बिना पुकारे चले मत जाना Poem by Kezia Kezia

बिना पुकारे चले मत जाना

दहलीज पर खड़े होकर

बिना पुकारे चले मत जाना

मैं आऊँगी किवाड़ खोलकर

तुम्हारा सत्कार करूंगी

बिना आवाज़ दिये चले मत जाना

तुम्हारी अवाज पर मै आऊंगी

छोड़कर इस संसार की रीतियाँ

तोड़ कर पाव की सभी बेड़ियाँ

तुम पुकारोगे गर कभी

हजारों मील दूर से भी

सुनकर आऊँगी तुम्हारी पुकार

मेरी तन्मयता को जगा देगी

तुम्हारी पुकार भर

मैं दौड़ कर आऊँगी


हर कसौटी पूरी कर

हर गहरे सागर को पार कर

हर अंधड़ को हरा कर

हर आसमान को भेद कर

तुम आवाज़ देकर तो देखो

कितना ही शोर और तमाशा होगा

कानो को सजा लूँगी

तुम्हारी आवाज से

सब कुछ भुला कर आऊँगी

तुम्हारी आवाज पर

नही आऊँ तो समझ लेना

तुम्हारी राह देखते देखते थक कर

काल की गोद में सो गयी

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Saturday, April 15, 2017
Topic(s) of this poem: waiting
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