तू दिन और मैं रात Poem by Kezia Kezia

तू दिन और मैं रात

Rating: 5.0

गर तू दिन है,

और मैं रात।

तो मिलें वहाँ

जहाँ सांझ देती है आसमान को

तारों की सौगात ।

जहाँ चाँद कहकहे लगाता है

पर धरती थोड़ा शरमाती है

जहाँ किनारे बहते रहते हैं

पर नदिया ठहरी रहती है

जहाँ जीवों को वेदना भूलती है

निर्जीवो में प्राण बसते हैं

जहां जन्मों के बंधन से हटकर

प्रेम निभाया जाता है

गर तू दिन है,

और मैं रात।

तो मिलें वहाँ

जहाँ साँझ

दिन और रात को एक कर

आँखों में सपना बन तैरती है

***

Thursday, August 20, 2020
Topic(s) of this poem: compassion,dream,love
COMMENTS OF THE POEM
Varsha M 02 September 2020

Bahut behtareen kalpna sur uska chitran. Bahut behtareen.

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Sharad Bhatia 20 August 2020

बहुत उम्दा, बहुत बेहतरीन रचना 10++

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M Asim Nehal 20 August 2020

Khoobsurat nazm.... Ye sangam koi naya gul zaroor khilayega...10+++++

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Rajnish Manga 20 August 2020

जहाँ किनारे बहते रहते हैं / पर नदिया ठहरी रहती है जहां जन्मों के बंधन से हटकर / प्रेम निभाया जाता है.... //.... प्रेम की एक अद्भुत तस्वीर और संबंधों का एक अनोखा रूप जिसमें अपने प्रिय से मिलने का आनन्द काल के बन्धनों से मुक्त हो कर सर्व-व्यापक हो जाता है.

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