जुस्तजु Poem by Jaideep Joshi

जुस्तजु

जुस्तजु थी बनाएं एक आशियाँ तूफ़ानों के उस पार
हकीकत से रु-ब-रु हो, मौजों को ही घर कर लिया।

ख्वाहिश थी कि ढूँढें एक रास्ता दुश्वारियों के बीच
तल्ख़ सच्चाइयों के मद्देनज़र, शोलों को डगर कर लिया।

आरज़ू थी कोई भेजे हमें प्यार भरा पैगाम
मायूसियों के इस दौर में, खुद को बेखबर कर लिया।

अरमान था फ़कत इतना बेदाग़ बसर हो ज़िन्दगी
जज़्बातों की रौ में तेरी खताओं को अपने सर कर लिया।

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