थोड़ा सा बचपन Poem by Jaideep Joshi

थोड़ा सा बचपन

होकर बड़े चाहे जो काम करना,
थोड़ा सा बचपन बचा कर रखना।

दूर कहीं ज़मीं आसमां मिलते हैं,
नाली के पानी में इन्द्र्धुष खिलते हैं,
धूप को फिर अपनी मुठ्ठी में कसना,
थोड़ा सा बचपन बचा कर रखना।

चाँद हर रात है घटता-बढ़ता,
सात घोड़ों के रथ पर सूरज निकलता,
तारों को फिर हीरे-मोती समझना,
थोड़ा सा बचपन बचा कर रखना।

कागज़ की कश्ती पर तैराना सपने,
मिलना सभी से जैसे हों रिश्ते अपने,
हथेली पर तुम फिर परछाई पकड़ना,
थोड़ा सा बचपन बचा कर रखना।

अचरज भरी आँखों से दुनिया को देखो,
जीवन से जानो, कुदरत से सीखो,
झरनों सा बहना, फ़ूलों सा महकना,
थोड़ा सा बचपन बचा कर रखना।

होकर बड़े चाहे जो काम करना,
थोड़ा सा बचपन बचा कर रखना।।

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