गृहस्थी का हवन कुण्ड था
हवन की सफलता के लिये
आहुति डालने की बारी आयी
वो आहुतियो पे आहुतियाँ डालती गई
पहले अपनी ख़ुशियाँ की आहुति दी
फिर गृहस्थी के हवन कुण्ड की मांग पर
अपने सुख चैन की आहुति दी
फिर अपने मान सम्मान की आहुति दी
बेबस ने अंत में अपने
अहम् की आहुति डाल दी
और भड़का दी हवनकुंड की अग्नि
उस अग्नि में से लपटें निकली
उसमें उसका अहम और उसकी विचारधारा,
सपने सर्वस्व जल कर राख हो गये
अब वो, वो ना थी
आहुति के बाद गृहस्थी सवांरने वाली
राख मात्र थी
उस हवनकुंड में परीक्षा के लिये
उस सीता भी ने सब कुछ झोंक दिया
राम सभी इससे दूर से ही प्रणाम कर
निकल जाते हैं
ये हवनकुंड कब राम से अहुति मांगता है
और कब कोई राम इसमें अपना सर्वस्व
अर्पण करने का साहस कर पाता है
ये हवनकुंड भी पहचान कर आहुति मांगता है
कि कौन सी आहुति उस अग्नि को
भस्म करे देगी
और कौन सी उस अग्नि के समान
एक और अग्नि को प्रज्ज्वलित कर देगी
सीता की आहुति से वो वेदी भी
भस्म हो जाती है
जिसमें वो अपना अहम भी झोंक कर
गृहस्थी को पवित्र कर देती है
******
अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच अपनी पहचान खो देने की हद तक समर्पण और त्याग की प्रतिमूर्ति है यह भारतीय नारी. यह पुरातन मिथक की पृष्ठभूमि में और भी अधिक प्रभाव छोड़ती है. धन्यवाद. आइये देखें: ....पहले अपनी ख़ुशियाँ की आहुति दी /..अपने सुख चैन की आहुति दी /..फिर अपने मान सम्मान की आहुति दी /..राख मात्र थी.
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
very nice.......sir