गुज़ारिश Poem by Jaideep Joshi

गुज़ारिश

मुस्तकिल ग़मों से दिल के, मरासिम पुराने हैं।
बेज़ा हैं इस मुहब्बत में, उम्मीदें जफ़ाओं की।।

फना हो जाते हैं एक दिन, हर लफ्ज़-ओ-जज़्बात।
सुनाई देती हैं ताकयामत, खामोशियाँ सदाओं की।।

बेअसर नहीं जाती कोई, गुज़ारिश दिली-ओ-मुखालिस।
वक़्त आने पर ज़ाहिर होती हैं, नियामतें दुआओं की।।

दें सुकून या मिटा डालें, वो आज मेरी हस्ती को।
बड़ी संगीन लगती है, बेरुखी हवाओं की।।

दाग़ दिल पर लगें 'बेलाग', हरगिज़ न दामन पर।
कि कुर्बानियों से बढती है, खुशबू वफ़ाओं की।।

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