दौड़ रहे हैं सभी
एक से बढ़कर एक
कहाँ रुकेंगे कौन जाने
क्यों दौड़ रहे हैं
कब तक दौड़ेंगे
कौन जाने
क्या पाने को दौड़ रहे हैं
किसी को नही पता
इस दौड़ में
औरो को गिराते हैं
और आगे बढ़ जाते हैं
गिरने वाले गिर कर भी
उठ जाते है, रेंगते हैं
फिर और तेज़ दौड़ते हैं
कहाँ तक दौड़ेंगे
हां, अंतिम सांस तक दौड़ेंगे
कुछ तो पा लेंगे
कुछ तो बटोर कर साथ ले जाएंगे
मैं नहीं दौड़ता
इसलिये नही कि मैं दौड़ना नही जानता
मैं दौड़ना जानता हूँ
पर मैं गिराना नही जानता
इसलिए दौड़ में सबसे पीछे हूँ
क्यों गिरा दूँ किसी को
और आगे बढ़ जाऊं
साथ लेकर भी तो चल सकते है
अंधी दौड़ में दौड़कर
क्या हासिल करना है
क्यों दौड़ रहे हैं
सब दौड़ रहे है
एक ओर दौड़ रहे हैं
कौन कहाँ पहुच पाया है
अंत मे सबको गुमनाम ही पाया है
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जी हाँ, हर ओर एक अंधी दौड़ लगी है. लोग भाग रहे हैं- कुछ ऐसा पाने की तलाश में जो वास्तव में है ही नहीं. और इसके लिए क्या क्या तिकड़म भिड़ाते हैं लोग. सुन्दर व्याख्या. धन्यवाद. आप चाहें तो इसी संदर्भ में मेरी कविता 'किसको फुरसत है' पढ़ सकते हैं. मैं दौड़ना जानता हूँ / पर मैं गिराना नही जानता / इसलिए दौड़ में सबसे पीछे हूँ