दौड़ Poem by Kezia Kezia

दौड़

दौड़ रहे हैं सभी

एक से बढ़कर एक

कहाँ रुकेंगे कौन जाने

क्यों दौड़ रहे हैं

कब तक दौड़ेंगे

कौन जाने

क्या पाने को दौड़ रहे हैं

किसी को नही पता

इस दौड़ में

औरो को गिराते हैं

और आगे बढ़ जाते हैं

गिरने वाले गिर कर भी

उठ जाते है, रेंगते हैं

फिर और तेज़ दौड़ते हैं

कहाँ तक दौड़ेंगे

हां, अंतिम सांस तक दौड़ेंगे

कुछ तो पा लेंगे

कुछ तो बटोर कर साथ ले जाएंगे

मैं नहीं दौड़ता

इसलिये नही कि मैं दौड़ना नही जानता

मैं दौड़ना जानता हूँ

पर मैं गिराना नही जानता

इसलिए दौड़ में सबसे पीछे हूँ

क्यों गिरा दूँ किसी को

और आगे बढ़ जाऊं

साथ लेकर भी तो चल सकते है

अंधी दौड़ में दौड़कर

क्या हासिल करना है

क्यों दौड़ रहे हैं

सब दौड़ रहे है

एक ओर दौड़ रहे हैं

कौन कहाँ पहुच पाया है

अंत मे सबको गुमनाम ही पाया है

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Saturday, April 29, 2017
Topic(s) of this poem: philosophical
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 29 April 2017

जी हाँ, हर ओर एक अंधी दौड़ लगी है. लोग भाग रहे हैं- कुछ ऐसा पाने की तलाश में जो वास्तव में है ही नहीं. और इसके लिए क्या क्या तिकड़म भिड़ाते हैं लोग. सुन्दर व्याख्या. धन्यवाद. आप चाहें तो इसी संदर्भ में मेरी कविता 'किसको फुरसत है' पढ़ सकते हैं. मैं दौड़ना जानता हूँ / पर मैं गिराना नही जानता / इसलिए दौड़ में सबसे पीछे हूँ

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