भगवान का घर बना रहे थे वो बेघर
जिनके दुधमुहे बच्चे भी सोते थे बाहर
जिनके पास सिर छुपाने तक को नहीं थी छत
कर रहे भगवान का घर बनाने को इतनी मेहनत
आज ये घर बना कर कोई और महल बनाएंगे
अपने सपने के दर को लेकिन तरस जाएंगे
तन पर मैले चीथड़े थे
पर भगवान को सजाने में जुटे थे
कोई गम नहीं था लेकिन मन में
दो वक़्त की रोटी मिल गयी
जी लेंगे इसी भ्रम में
जिनके पास घर भी है दर भी है
वो आते हैं इस घर में
अपने दुखड़े सुनाने को
भगवान से कुछ और ज्यादा मांगने को
शिकायतों का पिटारा खोलने को
इस दौड़ में आखिर तक दौड़ने को
कोई शिकायत नहीं करते
जो अपना पसीना बहाते
भगवान का घर बना रहे थे वो बेघर
जिनके दुधमुहे बच्चे भी सोते थे बाहर
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