श्यामल मेघों से आप्त नभ, तरसे मन को हर्षाता है;
भीषण गर्मी के ताप को हरने, वर्षा के मौसम आता है।
सूखे पेड़ों की तप्त देह पर, यौवन की मस्ती फलती है;
वर्षा की प्रथम फुहार से तृप्त, मिटटी भी कस्तूरी लगती है।
रिमझिम-रिमझिम, टप-टप बूँदें, प्यासी धरती पर पड़ती हैं;
पशु-पक्षी, मानव या पादप, नव आशाएं पलती हैं।
आषाढ़ के बाद श्रावण का आना, मानव को यही सिखाता है;
कष्टों को सहकर ही जीवन में, उल्लास का आनंद आता है।
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