घर के आंगन को महकाने
घर के आंगन में खिलखिलाने,
आगमन हुआ नन्हे पैरों का
गुलाबी कोमल कदम चिह्नों का!
चहकती चिड़िया शोभा आंगन की
नन्ही-सी कली फुलवारी की रानी,
खुशियों से घर का दामन भिगाने
नाच नचाने, सबको लुभाने,
देखो-देखो घर लक्ष्मी आई
देखो-देखो बिटिया रानी आई!
लाड़ दुलारी सबकी प्यारी
जब होने को आई सयानी,
घर वालों ने सीख सिखायी
पराया धन तू अमानत परायी,
नाम प्रतिष्ठा बनाए रखना
इज्जत घर की सम्हाले रखना,
अमानत तू पराये घर की
अभिमान तू पराये घर की!
बिदा हो गई जब घर की लक्ष्मी
ससुराल को भी वह खूब है भायी,
बेटी नहीं तू बहु है घर की
क्यूंकि तू पराये घर से आई,
कैसी विडंबना इस संसार की
बेटी बहु किस घर की कहलाई?
बहु परायी, पोता अपना
क्या रिवाज है इस समाज का,
बेटी होती सबको प्यारी
बहु पर केवल होती जिम्मेदारी,
समानता इनमें कब आएगी
बहु कब बेटी कहलाएगी?
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घर के आंगन को महकाने / घर के आंगन में खिलखिलाने, देखो देखो घर लक्ष्मी आई / देखो देखो बिटिया रानी आई! बेटी होती सबको प्यारी / बहु पर केवल होती जिम्मेदारी / बहु कब बेटी कहलाएंगी? @@@ बहुत सुंदर उदगार. हमारे समाज में बेटियों की वास्तविक स्थिति को रेखांकित करती एक अद्वितीय रचना. बेटी जब बहु बन कर दूसरे घर में जाती है, रातों रात उसके परिवेश में क्या बदलाव आ जाता है, उसका यथार्थ चित्रण. धन्यवाद.
Ji sir, Thank you... Society still needs to change, change their thoughts. There is still the people make difference between daughter and daughter-in-law.