माँ की पाती Poem by Anoop Pandit

माँ की पाती

मेरे बिखरे है केश, मेरो बिगडो है भेष
मेरे लल्ला तू जब ते गयो है परदेस

सुधि कोई लई नाय पाती कोई दई नाय
नाय मिली तेरी कोई खोज खबरिया
बापू तेरो रोज रोज झूठों दिलासा देवे मोय
नाय माने हिया मै जाके बैठूं रे अटरिया
मेरो फटो जाये हेज़ मेरे आंसू नहीं शेष
मेरे लल्ला तू जब ते गयो है परदेस

अब के भी सावन में सूखे है नैन मोरे
पथरा गए है तेरो रास्ता निहार के
कौन घडी जाने तू आवेगों लाल मेरे
ठाड़ी भई हूँ मैं तो अंगना बुहार के
श्वांस मेरी धीमे धीमे चले मेरे अवशेष
मेरे लल्ला तू जब ते गयो है परदेस

भूख मोहे लगे नाय, प्यास मेरी बुझे नाय
अंतर में मेरे लल्ला तू ही समायो है
बिसरा दई तेने अपनी य़ू माय भली
मै कैसे बिसराऊ क़ि तू मेरो जायो है
सुख ते तू जीवे सदा मोकुं लगा के ठेस
मेरे लल्ला तू जब ते गयो है परदेस

अंतिम चरण मेरे जीवन को आय गयो
राम जाने या तन ए कैसे तज पाउंगी
जो अब भी न आय पायो सुन ले ओ लाल मोरे
मर के भी मैं ना कभी तर पाउंगी
आजा क़ि बाकी है साँसे मेरी कछु शेष
मेरे लल्ला तू जब ते गयो है परदेस

अनूप शर्मा 'मामिन'

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
माँ भगवान् का रूप होती है I माँ को छोड़कर जाना माँ के किसी अंग के काटने के सामान होता है I सभी से प्रार्थना है क़ि माँ से अपने को अलग ना करे I

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अनूप शर्मा ' मामिन '
COMMENTS OF THE POEM
Tribhawan Kaul 06 July 2013

Very nicely written. Happy writing.

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