बाहरी आडंबरों की प्रशंसा से सुसज्जित
यह समाज हमारा है,
एक कतार में भागते लोगों की दोड़ का भागीदार होना
कर्तव्य हमारा है!
खुली सोच का स्वतंत्र इंसान,
सपने, इच्छाएं उसकी अवांछनीय हैं,
यह समाज हमारा है
इसके अनुसार चलना चलन हमारा है!
धर्म की सलाखों के पीछे
परम्पराओं की बेड़ियों में जकड़े रहकर,
खुद को भूल जाना काम हमारा है,
खुद की खुशियां चाहना घोर अपराध है,
क्योंकि समाज के अनुसार चलना चलन हमारा है!
शिक्षित हो या अशिक्षित
अलग दृष्टिकोण रखना अमान्य है,
अच्छा करें या बुरा करें
निसंदेह दोनों तरफ बातें बनना स्पष्ट है,
फिर भी समाज की परवाह करना धर्म हमारा है!
नाम, इज्जत, दौलत हो
सपनों का त्याग चाहें मजबूरी क्यों ना हो,
कम में खुश गरीब इंसान
बाहरी व्यंग्य से लदा क्यों ना हो,
यह समाज हमारा है
अमीरी गरीबी का ढोल पीटना काम हमारा है!
आदमी से पहले औरत के चाल चलन पर उंगली उठाना
हमारी रीत पुरानी है,
आज भी दर्द सह चुप हो जाना
कुछ हम में से किसी की कहानी है,
फिर भी समाज के अनुसार चलना चलन हमारा है!
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I would like to translate this poem
Could not read. Should be in urdu or english script. Thanks