आस्तिव की खोज Poem by Shipra singh (ships)

आस्तिव की खोज

Rating: 2.0

आस्तित्व जीवन की मनऔती हैं,
जो हारने के बाद जीवन की फिरौती बन जाती है।

नाटक बनाने वालों को नाटकार कहते है।
चित्र बनाने वालों को चित्रकार कहते हैं।
कथा बनाने वालों को कथाकार कहते हैं।
कला बनाने वालों को कलाकार कहते है।
आस्तित्व बनाने वालों को स्वर्णकार कहते है।

लोग कितने चालबाज़, साथ ही धोकेबाज़ भी हैं।
कुछ लोग अगर
अस्तित्व की दैनिकता को बदलना चाहते हैं,
तो पूरी दुनिया उनके नैतिकता को बदलना चाहती हैं,

आज जाकर एक अच्छे प्रधानमंत्री,
नरेंद्र मोदी ने काले धन पर उंगली उठाई है।
तब पूरी दुनिया ने
उन्हें ही कामचोर बता, उन्ही पर उंगली उठाई है।
जब लोगो ने अपनी मति बदली,
तब मोदी ने अपनी गति बदली है।
तब जाके पूरी दुनिया ने अपनी नीति बदली है।

क्योकि, 'यथा राजा तथा प्रजा'।


शिप्रा सिंह

आस्तिव की खोज
Tuesday, June 6, 2017
Topic(s) of this poem: motivation
COMMENTS OF THE POEM
Aditi Rai 27 August 2018

Amazing poems Shipra. Great job

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