जाने दीजिये साहब
ऐसा तो होता रहेगा
सूरज पूरब से निकलकर
पश्चिम में ढलता रहेगा
बादल यूँहि गरजते रहेंगे
समंदर में जाकर बरसते रहेंगे
तक़दीरें मिटकर खाक होती रहेंगी
ठोकर खाकर आवाजें सोती रहेंगी
आग बुझकर राख होती रहेगी
जिंदगियाँ मरकर लाश होती रहेंगी
मजलिसो में चर्चे होते रहेंगे
आमदनी से ज्यादा खर्चे होते रहेंगे
गरीबों के घर फाके होते रहेंगे
आबरू के कत्ल होते रहेंगे
बादल यूँहि गरजते रहेंगे
समंदर मे जाकर बरसते रहेंगे
जनता भेड़ चाल चलती रहेगी
नेता की कसौटी पर खरी उतरती रहेगी
नदियां गंदगी को मुहानो ढोती रहेंगी
थककर खुद को सागर में खोती रहेंगी
बादल यूँहि गरजते रहेंगे
समंदर मे जाकर बरसते रहेंगे
कभी कभी सहरा में बूँदें गिरती रहेंगी
हर रात की सुबह होती रहेगी
चिंगारी से धुँआ उठता रहेगा
और आसमान को यूँहि ढकता रहेगा
जाने दीजिये साहब
ऐसा तो होता रहेगा
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