ऐसा तो होता रहेगा Poem by Kezia Kezia

ऐसा तो होता रहेगा

जाने दीजिये साहब
ऐसा तो होता रहेगा
सूरज पूरब से निकलकर
पश्चिम में ढलता रहेगा
बादल यूँहि गरजते रहेंगे
समंदर में जाकर बरसते रहेंगे
तक़दीरें मिटकर खाक होती रहेंगी
ठोकर खाकर आवाजें सोती रहेंगी
आग बुझकर राख होती रहेगी
जिंदगियाँ मरकर लाश होती रहेंगी
मजलिसो में चर्चे होते रहेंगे
आमदनी से ज्यादा खर्चे होते रहेंगे
गरीबों के घर फाके होते रहेंगे
आबरू के कत्ल होते रहेंगे
बादल यूँहि गरजते रहेंगे
समंदर मे जाकर बरसते रहेंगे
जनता भेड़ चाल चलती रहेगी
नेता की कसौटी पर खरी उतरती रहेगी
नदियां गंदगी को मुहानो ढोती रहेंगी
थककर खुद को सागर में खोती रहेंगी
बादल यूँहि गरजते रहेंगे
समंदर मे जाकर बरसते रहेंगे
कभी कभी सहरा में बूँदें गिरती रहेंगी
हर रात की सुबह होती रहेगी
चिंगारी से धुँआ उठता रहेगा
और आसमान को यूँहि ढकता रहेगा
जाने दीजिये साहब
ऐसा तो होता रहेगा
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Saturday, June 10, 2017
Topic(s) of this poem: social behaviour
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