सदियों बीत गए तुम्हें रूकसत हुए
पर क्यो आज भी लगता हैं मुझे
तुम मुझमें ही बसे हुए
अक्सर ढूँढता हूँ खुद में तुम्हे
पर सिवा तुम्हारी यादों के
कुछ और नजर न आता मुझे
तेरे दीदार को तरसे हैं नयन मेरे
न जाने कब तक चलेगी ये सिलसिला
आरजु हैं एक बार मिलने को तुमसे
साँसे थमने से पहले
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