सूरज कठघरे में Poem by Upendra Singh 'suman'

सूरज कठघरे में

Rating: 5.0


खबर है कि
आज़ सुबह कुहरे ने
सूरज पर असहिष्णु व आक्रामक होने का
संगीन आरोप लगाया है
और अपनी अस्मिता और अस्तित्व के लिए
उसे गंभीर खतरा बताया है.
सूरज की इस तथाकथित असहिष्णुता और आक्रामकता
के खिलाफ पूरे वायुमंडल में सियासत गरमाई है.
अंधेरों ने कुहरे का पक्ष लेते हुए,
सूरज के इस रवैये पर कड़ी आपत्ति जताई है
और आंधी, भूचाल, चक्रवात, बाढ़, सूखा, प्रदूषण
आदि की आपात बैठक बुलाई है.
ताज़ा हालात ये है कि -
पूरे ब्रहमांड में सूरज के खिलाफ बगावत है,
बवंडर है, बवाल है,
आम आदमी का बुरा हाल है
हर प्राणी बेहाल है.
धरना, प्रदर्शन, हो-हल्ला और नारेबाजी ने
आसमान सिर पर उठा लिया है.
शांति, शालीनता और संविधान को बंधक बना लिया है.
जनजीवन की गाडी ठहर गई है,
ये सब देखकर इंशानियत सिहर गई है.
इधर अपने खिलाफ यह अजीबोगरीब
सियासत देखकर सूरज भौंचक्का है.
उसकी बोलती बंद है,
वह हक्का-बक्का है.
दो टूक शब्दों में कहें तो
पूरे विपक्ष ने माहौल कुछ इस तरह गढ़ा है कि
अब सूरज आरोप के कठघरे में खड़ा है.
उपेन्द्र सिंह ‘सुमन'

Tuesday, December 15, 2015
Topic(s) of this poem: politics
COMMENTS OF THE POEM
Renu Singh 16 December 2015

देश के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को को प्रदर्शित करती प्रभावोत्पादक रचना,

0 0 Reply
Rajnish Manga 15 December 2015

चौधरी सूरज प्रसाद की चौधराहट खतरे में हैं. प्रतिपक्ष की काली शक्तियाँ उसे चुनौती पेश करती है. देखिये क्या हो. सुंदर. धरना, प्रदर्शन, हो-हल्ला और नारेबाजी ने शांति, शालीनता और संविधान को बंधक बना लिया है. ये सब देखकर इंशानियत सिहर गई है.

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