वो दरिया और वो साहिल Poem by Ahatisham Alam

वो दरिया और वो साहिल

वो दरिया और वो साहिल
एक मैं और एक मेरा दिल
तन्हा तन्हा एक आलम
वो खुशरंग सजी महफ़िल

वो सब्ज़ था जो रंग बदलता है
और सुर्ख़ नज़ारे में ढलता है
एक साया और एक हक़ीक़त
ये आलम दोनों पर मचलता है

वो रेत और पानी के नज़ारे थे
पत्थरों से जड़े किनारे थे
कोई पेड़ों की आड़ में छिप गया
पर साथ खड़े वो हमारे थे।

Thursday, June 29, 2017
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 29 June 2017

बेहतरीन नज़्म है जिसमे खुबसूरत और नाज़ुक अहसास की बानगी देखने को मिलती है. बहुत खूब जनाब अहतिशाम आलम जी. तन्हा तन्हा एक आलम / वो खुशरंग सजी महफ़िल

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