वो दरिया और वो साहिल
एक मैं और एक मेरा दिल
तन्हा तन्हा एक आलम
वो खुशरंग सजी महफ़िल
वो सब्ज़ था जो रंग बदलता है
और सुर्ख़ नज़ारे में ढलता है
एक साया और एक हक़ीक़त
ये आलम दोनों पर मचलता है
वो रेत और पानी के नज़ारे थे
पत्थरों से जड़े किनारे थे
कोई पेड़ों की आड़ में छिप गया
पर साथ खड़े वो हमारे थे।
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बेहतरीन नज़्म है जिसमे खुबसूरत और नाज़ुक अहसास की बानगी देखने को मिलती है. बहुत खूब जनाब अहतिशाम आलम जी. तन्हा तन्हा एक आलम / वो खुशरंग सजी महफ़िल