सुबह हो न सकी और मैं सो ना सका Poem by Ahatisham Alam

सुबह हो न सकी और मैं सो ना सका

Rating: 5.0

रात ऐसी कि सूरज ग़ुरूब हो न सका
सुबह हो न सकी और मैं सो न सका

मुन्तज़िर थी निगाह जिसकी आमद की
काश कि मेरा वो सनम आये
पल भर ठहर ऐ मेरी अजल
वो जो आये तो ही हम आये

चाहा लाख कि दर्द से दूरी हो
ऐसा अपना बना वो कि कभी खो न सका
सुबह हो न सकी और मैं सो ना सका

बहुत कोशिश की कि कोई याद भूल जाऊँ
जो चाहा वो तो कभी भी हो ना सका
सुबह हो न सकी और मैं सो ना सका ।

Monday, July 3, 2017
Topic(s) of this poem: love and life
COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 03 July 2017

bahut khubsurat nazm. mohabbat ka ek roop yh bhi hai. shukriya.

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