कुछ कहा नहीं और रुठ जाती है
कितना लड़कपन है लड़की में
फिर बिन मनाए मान जाती है
कितना पागलपन है लड़की में
कहने को तो कुछ नही कहती
कितना खामोशी है लड़की में
उसे हाथ लगाकर देखो
कितनी चंचलता है लड़की में
आंखों में सब छुपा लेती है
आंखों से सब बता देती है
जाने कितना राज है लड़की में
उसे छेड़ने की कोशिश न करना
एक सैलाब है लड़की में
फूलों जैसी कुम्हला जाती है
कितनी कोमलता है लड़की में
लेकिन सीने से लगा कर देखो
कितना आग है लड़की में
थोड़ा सा प्यार दे कर देखो
कितनी निर्मलता है लड़की में
उसे बहिष्कार कर के देखो
कितनी गंदगी है लड़की में
सारा जीवन अपना लूटा देती है
कितना समर्पण है लड़की में
लेकिन किसी ने उसका मन न देखा
कितना अवसाद है लड़की में
वो आंख बंद कर दे देती है
अपनी जीवन डोर तुम्हारे हाथों में
कितना अंधविश्वास है लड़की में
उसे सहेजना, उसे संभालना
बड़ी महीन डोर है लड़की में
जो एक बार उलझ गयी तो
सारी उम्र न सुलझा सकोगे
इतना हिसाब है लड़की में
पहला पन्ना ध्यान से पलटना
इक खुली किताब है लड़की में
धरती की परिधि कम पड़ जाती है
कितनी कल्पना है लड़की में
और एक पल में सब मिटा देती है
कितनी जीवंतता है लड़की में
उसके अंग-अंग से टपकती है
कितनी वासना है लड़की में
और ये मदिरा का प्याला नही
जो शाम पी तो सुबह उतर जाएगी
सारी उमर जो छाया रहेगा
इतना नशा है लड़की में
वो सूरज की तरह तो खिल जाती है
लेकिन ये कैसी सांझ है लड़की में
सदियाँ गुज़र गयीं और तुम समझ न पाए
आख़िर क्या है एक लड़की में...
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