जब तक मैं मौन था Poem by Kezia Kezia

जब तक मैं मौन था

जब तक मैं मौन था
तब तक सागर भी मौन था
धरा भी मौन थी
दसों दिशाये मौन थीं
हर प्राणी मौन था
हर संस्कार मौन था
मैंने बोल पा लिये तो
सबने दहाड़ना शुरु कर दिया
मेरे शब्दों से मुझे ही
बींधना शुरु कर दिया
उन शब्दों के तीरों से
एक शैय्या को सजा लिया
अपने बोल को उसी
शर शैय्या पर दुबका कर सुला दिया
*****

Wednesday, July 19, 2017
Topic(s) of this poem: philosophical
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success