काश मुझे भी परिंदों की मानिंद खुला आसमां मिल जाता,
और मंजिल तक साथ देने के लिए कोई हमराही मिल जाता,
किसी बादल के कोने में छोटा सा आशियाँ बनाते हम दोनों
काश मुझे भी ऐसा बेपरवाह मुक्कमल जहाँ मिल जाता,
गम का अँधेरा दूर करने के लिए इश्किया चिराग मिल जाता,
और हज़ारो ख्वाईशें पूरी करने के लिए भगवान मिल जाता,
किसी उम्मीद के आँचल से लिपटे बेफिक्र सो जाते हम दोनों
काश मुझे भी ऐसा बेपरवाह मुक्कमल जहाँ मिल जाता,
फासले जो होते दरमियाँ तो मिटाने के लिए वक़्त मिल जाता,
उनके साथ कुछ वक़्त बिताने के लिए ये कमबख्त मिल जाता
किसी वादे के साये में बिना शिकवे शिकायत के रहते हम दोनों
तो काश मुझे भी ख्वाबो में कोई ख्वाब मुकम्मल मिल जाता
तो काश मुझे भी फिर ऐसा बेपरवाह मुक्कमल जहाँ मिल जाता..............
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