भय-भार जगत का दूर करो! Poem by Ajay Kumar Adarsh

भय-भार जगत का दूर करो!

हो रहा अंधियारा जगत
अब धर्मशील सब हारा है!
नि: सहाय निसपृह जनो का
कोई सम्बल ना कोई सहारा है!

तूने वचन दिया चक्रधारी
जब-जब धर्म यहॉ हारेगा!
उसी काल, फिर कृष्ण कहीं
किसी अर्जुन को ललकारेगा!

हे महाकाल तुम अवतारो
अधर्म का मस्तक चूर करो
अब कष्ट हरो तुम हे स्वामी
भय-भार जगत का दूर करो!

Sunday, September 17, 2017
Topic(s) of this poem: god
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Ajay Kumar Adarsh

Ajay Kumar Adarsh

Khagaria (Bihar) / INDIA
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