हो रहा अंधियारा जगत
अब धर्मशील सब हारा है!
नि: सहाय निसपृह जनो का
कोई सम्बल ना कोई सहारा है!
तूने वचन दिया चक्रधारी
जब-जब धर्म यहॉ हारेगा!
उसी काल, फिर कृष्ण कहीं
किसी अर्जुन को ललकारेगा!
हे महाकाल तुम अवतारो
अधर्म का मस्तक चूर करो
अब कष्ट हरो तुम हे स्वामी
भय-भार जगत का दूर करो!
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