हुआ सुबह जब लाली छायी,
बागो में खुशहाली आयी।
लाल हुआ जब सूरज निकला,
था अंग रंग से दुबला पतला।
खग गाये जग बहुत सुहाए,
मधुर अनिल भी मन को भये।
बट्ट मंजरी को वर्षायी,
बागो में खुशहाली आयी।
पहुच गया जो मध्य गगन में,
खो न जाये अपने मगन में ।
व्यथा बढ़ाये व्यथा मिटाये,
क्या करे कुछ समझ ना पाए।
पल को काटता युही मुस्कुरायी,
बागो में खुशहाली आयी।
ढला शाम तो कुछ ना भाये,
चलना चाहे चल ना पाए।
लाल हुआ फिर पहले जैसा,
नही खुशी थी अबकी वैसा।
खग मृग भी दुख को दर्शाये,
मधुर अनिल कुछ कर ना पये।
बेदना में सब करे विदाई,
बागो में भी मूर्छा छायी।
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Such a beautiful poetry......keep it up