मैं चाहूँ ऊँचा उड़ जाऊँ Poem by Dr. Sada Bihari Sahu

मैं चाहूँ ऊँचा उड़ जाऊँ

Rating: 5.0

मैं चाहूँ ऊँचा उड़ जाऊँ
आसमान पर जाकर छाऊँ
चंदा मामा से बतलाऊँ
वही कहानी सुनूँ सुनाऊँ
कहती थी रोने पर मेरे- नानी जो मेरी बचपन में।
मैं चाहूँ ऊँचा उड़ जाऊँ
आसमान पर जाकर छाऊँ
सूरज से भी पूछ के आऊँ
क्या चाहे वह, पता लगाऊँ
पिता कराते नमन उसे क्यों सुबह-सवेरे नित उपवन में।
मैं चाहूँ ऊँचा उड़ जाऊँ
आसमान पर जाकर छाऊँ
तारों से जाकर बतियाऊँ
जिज्ञासा यह शांत कराऊँ
कहाँ छिपे रहते हैं दिन में, रात बिता नभ के आँगन में।
क्या वे सूरज से डर जाते
या चंदा से प्रीत निभाते
यह सुनकर तारे मुस्काते
दिन में बस तुम देख न पाते
भय या प्रेम नहीं है कुछ हमको, हरदम रहते नील गगन में।

Monday, December 11, 2017
Topic(s) of this poem: dream,wish
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Poem is in Hindi language and it is about a wish or dream to fly.
COMMENTS OF THE POEM
Dr Dillip K Swain 29 January 2018

मैं चाहूँ ऊँचा उड़ जाऊँ आसमान पर जाकर छाऊँ.....Excellent! The goal set is admirable.....thanks for sharing....10

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Sada Bihari Sahu 24 December 2017

Very nice.

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