हम पढ़ रहे है । Poem by Rinku Tiwari

हम पढ़ रहे है ।

देखो, हम पढ़ रहे है ।
घरों में, बागों में, स्टेशनों पर
कभी किताब पढ़ते हैं ।
अख़बार को भी नहीं छोड़ते हैं,
अपना न हो तो क्या!
भाई साहब के पास है न!
हे भाई, आज का है?
हाँ, आज का है पर,
मैंने नहीं पढ़ा अभी,
कहा उसने वही पर,
तभी किसी ने फेंका,
पुराना उपन्यास का किताब,
दौड़कर उठाया उसे,
उठाकर दिखाया हमने,
हूँ मैं एक किताबी कीड़ा ।

Friday, December 15, 2017
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Rinku Tiwari

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