सुबह हो या शाम, Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

सुबह हो या शाम,

सुबह हो या शाम,
दिन हो या रात,
घड़ी हो या पहर,
मैं तेरा, बस तेरा,
न और कोई मेरा,
तुम ही तो अँदर,
पाओ कुछ अँतर,
पूछना न कभी,
न तुम अजनबी,
न जाओ कहीं।

Monday, December 18, 2017
Topic(s) of this poem: love
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