लाख समझाया अपने मन को, भूलने की राह न तकते हैं,
हजार बार बताया नजरों को, तेरी दर से न तनिक हटते हैं,
कई बार बताया जुबान को, लेकिन तेरा ही नाम लेते हैं,
अपने जादू का बता दो इल्म, क्यों हम तुम पर ही मरते हैं।
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शाँति-सुख वैभव-प्रदायी हे देव रवि! सँकल्प बना दें दृढ़ निश्चयकर,
आत्म-प्राण शक्ति परिपूण^ बने, सब बिधि हो मँगलमय हितकर।
तन-मन-वचन सहित हम करते, आप श्रीगुरुदेव में समर्पण,
स्वीकार करें मुझे हे देव भास्कर! चाहता 'नवीन' आप श्रीगुरु चरण शरण।।
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