हर घर हर चौराहे Poem by Dr. Navin Kumar Upadhyay

हर घर हर चौराहे

हर घर हर चौराहे हर कोई नाम तेरा लेता,
लेकिन आज तक मुझे दिखा न पाया कोई।
ऐसी क्या खामियां रहती बसती तुझमें सदा
नहीं बताना चाहता दरवाजा भी तेरा कोई।।
आकर दिखा दो अपना मुखड़ा, एक बार बस,
हम भी जान जायें, रहता पड़ोसी ही बस कोई।
कभी जरूरत पड़ेगी तुमको -मुझको जीवन में,
'नवीन'साथी ही काम आता, और न आता कोई।

Monday, December 18, 2017
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success