झुठ बोल, सच सा चमक रहे इतने कि
लगता है हरिश्चंद्र के पुत्तर बन गये हैं
किचड़ में नहाये मला-बाबा-वाला-साबुन कि
खुशबू तो शरीर के जैसे भीतर बन गये हैं
गोल-गोल बात सुन आपकी तो लगता है
भारत के सरकार ना, घन-चक्कर बन गये हैं
गदहे थे लगता था अपनी भी जान है
दुनिया में अपना भी कोई स्थान है
आप आये लगता है मच्छर बन गये हैं
रेस के जो घोड़े थे दौड़ रहे आगे-आगे
आजकल बिचारे सब खच्चर बन गये हैं
आप भी कमाल के हैं, साथी सब धमाल के
लगता है सारे के सारे लिच्चर बन गये हैं
कथ-कथ बातें आप करते जुगाल ऐसे
लगता है साढे-साती शनिचर बन गये हैं
बुरा मत मानियेगा साहेब मेरी बातों का
फ्रस्टेसन के मारे हम फटीचर बन गये हैं
जितने फटीचर थे सारे नितीश के राज में
आजकल बिहार के स्कूल-टीचर बन गये हैं
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