बहुत देर तक मैं अकेला चला हूँ। Poem by Ahatisham Alam

बहुत देर तक मैं अकेला चला हूँ।

बहुत देर तक मैं अकेला चला हूँ
बहुत मन्ज़िलों का सफर तय किया है
जहां चाहा मैंने क़याम कर लिया है
नही कोई अपना घर तय किया है
बहुत मंज़िलों का सफ़र तय किया है।

Wednesday, January 10, 2018
Topic(s) of this poem: love,love and life
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