वो बज़्मे इम्तेहान में तबादला-ए-ख़याल करना
छुपाकर सवालात को निगाहबानों से डरना
था अजब उनसे पूछना मेरा
और ना बताना उनका
कोशिशें बारहा करते रहे हम
पर ना छूट पाया याद आना उनका।
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