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क्या रखा है वक्त गँवाने
औरों के आख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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धर्मग्रंथ के अंकित अक्षर
परम सत्य है परम तथ्य है,
पर क्या तुम वैसा कर लेते
निर्देशित जो धरम कथ्य है?
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अक्षर के वाचन में क्या है
तोते जैसे गान में?
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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दिनकर का पूजन करने से
तेज नहीं संचित होता,
धर्म ग्रन्थ अर्चन करने से
अक्ल नहीं अर्जित होता।
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मात्र बुद्धि की बात नहीं
विवर्द्धन कर निज ज्ञान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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जिस ईश्वर की करते बातें
देखो सृष्टि रचने में,
पुरुषार्थ कितना लगता है
इस जीवन को गढ़ने में।
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कुछ तो गरिमा लाओ निज में
क्या बाहर गुणगान में?
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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क्या रखा है वक्त गँवाने
औरों के आख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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अजय अमिताभ सुमन
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