मैं भी तो चाहता था। Poem by Prabhakr Anil

मैं भी तो चाहता था।

Rating: 5.0

तुम जो बदल गये थे, देखो मैं भी बदल गया हूं,
तेरी कुछ यादों को खुद से मिटाना चाहता था।

जो देख कर मुझको, अपनी नजरे घुमा लेते थे,
मैं भी तो तुम्हे देख खुद को छुपाना चाहता था।

जब तुमने पहल किया, फिरसे मुझसे मिलने की,
मैं भी तो तुमसे मिलकर यही बताना चाहता था।

ये दुनियां नही है वैसी, जैसा की तुम चाहते हो,
कुछ तजुर्बो से तुमको रूबरू कराना चाहता था।

गम तो नही था कोई, तुम जो छोड़ गए थे मुझको,
दुनिया की गंदी नजरों से तुम्हे छुपाना चाहता था।

तुमको लगा अब तक, तेरा पीछा मैने किया है,
पर बन के तेरी साया तुझको बचाना चाहता था।

बड़ी बेरहमी से तूने ख़ंजर, उतारा है मेरे सीने में,
तुझसे बिछड़ कर मैं भी कहां जीना चाहता था।

Saturday, May 26, 2018
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
Abhipsa Panda 06 October 2018

A very heart touching poem

1 0 Reply
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Prabhakr Anil

Prabhakr Anil

Kotwan, . Barhaj deoria up
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