सियासत खेल हो जैसे Poem by Ahatisham Alam

सियासत खेल हो जैसे

किसपे करें भरोसा
है कौन बोलता सच
सच भी तो यहाँ पे
झूट का मेल हो जैसे
सियासत खेल हो जैसे।

सब एक दूसरे के
पीछे कुछ यूँ पड़े हैं
लालच की पटरियों पे
कोई रेल हो जैसे
सियासत खेल हो जैसे।

Tuesday, December 25, 2018
Topic(s) of this poem: cheating,political
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COMMENTS OF THE POEM
Rajnish Manga 25 December 2018

लालच की पटरियों पे कोई रेल हो जैसे सियासत खेल हो जैसे.... आज की सियासत का अच्छा विश्लेषण. धन्यवाद.

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