सपने मेरी हसरत के Poem by Upendra Singh 'suman'

सपने मेरी हसरत के

ख्वाब पलकों में सजाये थे अश्कों में बह गए
सपने मेरी हसरत के कुवांरे ही रह गए


तुमने हमें ठुकराया तुम्हारी ये सोच थी.
हम जो तुम्हारे थे तुम्हारे ही रह गए.


दुल्हन सी हंसीं रात को किसकी नज़र लगी.
गिनने को आसमां में तारे ही रह गए.


करवटें बदलते बीती है रात कल भी.
दुनियाँ में अब तो गम सहारे ही रह गए.

मझधार में अटकी रही कश्ती मेरी ‘सुमन'
पतवार लिए हम तो किनारे ही रह गए

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