मेरे अंतर के सागर में आकरमें, एक नदी समाई है.
उद्वेलित है मुझको करती, तन-मन में मादकता भरती.
गीतों में मेरे छाई है, मेरे अंतर के सागर में........
हरितिमा बिछाती मरू-मरू में,
झूमी बहार बन तरू-तरू में.
माधवी लता इठलाई है.
नव-युग की वह तरूणाई है, मेरे अंतर के सागर में........
पाषणों में पथ निर्मित कर,
बाधाओं से अविचल लड़कर,
धारा अमृत की लाई है, मेरे अंतर के सागर में........
उर्जस्वित है मुझको करती,
जीवन में अभिनव रंग भरती,
लेती मुझमें अंगड़ाई है. मेरे अंतर के सागर में........
मुझमें विलीन होकर भी,
अस्मिता स्वयं की खोकर भी,
गति भूल न अपनी पाई है, मेरे अंतर के सागर में........
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Ocean of heart invites river of love to unite. What an amazing poem is beautifully penned on love topic.!