वो दरवाज़ा पीटते रहे
कमरे में दो खिड़कियां भी थी
भाई चार थे हम
वालिद की दो लड़कियां भी थी
मै नाराज़ किसी से ना था
पैरों में मेरे बेड़ियां भी थी
शिकायते खुद से ही कर रहा था मैं
और घर मे मेरे सीढियां भी थी
मुझे मेरा काबा मिल ना सका
यूं तो सम्त चार थे नमाजेंभी थी
एक अश्रा हुआ है मा को गुज़रे
खाला अम्मी ने संभाला और नानी भी थी
ना गया दोस्तों में ना महफ़िल बिठाई
खड़ी घर के बाहर मेरी गाड़ी भी थी
कुछ खा रहा था मुझे अन्दर ही अन्दर
यूं तो भूक प्यास भी थी मुस्कुराहटें भी थी
अब अपना गम क्या बाटता तुझसे
तू केहता परेशानियां तुझे भी थी
मेरे नाराज़ होने पर परेशान है सब
क़त्ल कर दिया और केहते है मोहब्बत भी थी।
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बेहतरीन रचना, जिसमें एक " अकेलेपन" का दर्द झलकता है, धन्यवाद मित्र बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ Rated10+ " वो अकेलापन" " वो अकेलापन" जब कभी अपनों के बीच भी महसूस होता है ।। " वो अकेलापन" जहाँ बातें तो बहुत होती हैं, पर वो बातें " senseless" जैसे सी होती हैं ।। " वो अकेलापन" जहाँ " तेरे" सिवा सब कुछ हैं।।