कोई किसी को क्या सिखाए Poem by Tabish Raza

कोई किसी को क्या सिखाए

कोई किसी को क्या सिखाए!

ये जो बिखरे हैं नदी की डाल से,
मिले दरिया से तो मातम मनाए।
जैसे मुकम्मल एक अफसाना हुआ है,
चलो इसे भी कैद करे एक मंदिर बनाए।

कोई किसी को क्या सिखाए!

पन्ने कुदरत के पलट कर जो जश्न मनाए,
ना लाइलाहा ना इल्ललाह सुनाए।
है गुमशुदा जो वो मंजिल ही तो है।
ये कब्र लिए फिरते है कपड़ो में ढक कर
आजादी उसे क्या बताए।

कोई किसी को क्या सिखाए
कोई किसी को क्या सिखाए॥

Wednesday, July 29, 2020
Topic(s) of this poem: lessons of life
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