अटल जी चले गए
अटल जी चले गए,
एक महान शख्सियत का लोप हो गया।
कलम उठाकर लिखना चाहा,
शब्दों का अकाल हो गया।
उनकी तारीफ करना,
सूरज को दिया दिखाना है।
मन में टीस सी उठी,
कलम को झकझोरा।
याद आया इंसानियत को,
बेशकीमती मूर्ति का विसर्जन हो गया।
अटल जी चले गए,
लोहा अपनी काबिलियत का मनवा गए।
कभी राजधर्म नहीं छोड़ा,
प्रजातांत्रिक मूल्यों को अपनाएं रखा।
कुछ मुद्दों पर तो,
अपनों से भी अलग दिखाई दिए।
उनकी सिद्धांत प्रियता के,
विरोधी भी कायल हो गए।
सर्वत्र ईमानदारी, इंसानियत का,
झंडा गाड़ गए।
अटल जी चले गए,
जाना तो सभी को है इस जहां से।
अपनी बहुत सी सीख,
दुनिया को दे गए।
आगे क्या लिखूं,
सब कुछ संभव नहीं।
शब्दों में उनका वर्णन,
असंभव है असंभव है।
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem