मंजिल का अवसान नहीं Poem by Ajay Amitabh Suman

मंजिल का अवसान नहीं

Rating: 5.0

इस सृष्टि में हर व्यक्ति को, आजादी अभिव्यक्ति की,
व्यक्ति का निजस्वार्थ फलित हो, नही चाह ये सृष्टि की।
जिस नदिया की नौका जाके, नदिया के हीं धार बहे,
उस नौका को किधर फ़िक्र कि, कोई ना पतवार रहे?
लहरों से लड़ने भिड़ने में, उस नौका का सम्मान नहीं,
विजय मार्ग के टल जाने से, मंजिल का अवसान नहीं।

जिन्हें चाह है इस जीवन में, स्वर्णिम भोर उजाले  की,
उन  राहों पे स्वागत करते, घटा टोप अन्धियारे भी।
इन घटाटोप अंधियारों का, संज्ञान अति आवश्यक है,
गर तम से मन में घन व्याप्त हो, सारे श्रम निरर्थक है।
आड़ी तिरछी सी गलियों में, लुकछिप रहना त्राण नहीं,
भय के मन में फल जाने से, भला लुप्त निज ज्ञान कहीं?

इस जीवन में आये हो तो, अरिदल के भी वाण चलेंगे,
जिह्वा से अग्नि  की वर्षा, वाणि  से अपमान फलेंगे।
आंखों में चिंगारी तो क्या, मन मे उनके विष गरल हो,
उनके जैसा ना बन जाना, भाव जगे वो देख सरल हो।
वक्त पड़े तो झुक  जाने में, खोता  क्या सम्मान कहीं?
निज-ह्रदय प्रेम से रहे आप्त, इससे बेहतर उत्थान नहीं।

अजय अमिताभ सुमन

मंजिल का अवसान नहीं
Saturday, January 30, 2021
Topic(s) of this poem: hindi ,goal ,inspiration
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
एक व्यक्ति के जीवन में उसकी ईक्क्षानुसार घटनाएँ प्रतिफलित नहीं होती, बल्कि घटनाओं को  प्रतिफलित करने के लिए प्रयास करने पड़ते हैं। समयानुसार झुकना पड़ता है । परिस्थिति के अनुसार  ढ़लना पड़ता है । उपाय के रास्ते अक्सर दृष्टिकोण के परिवर्तित होने पर दृष्टिगोचित होने लगते हैं। बस स्वयं को हर तरह के उपाय के लिए खुला रखना पड़ता है। प्रकृति का यही रहस्य है, अवसान के बाद उदय और श्रम के बाद विश्राम।
COMMENTS OF THE POEM
Varsha M 30 January 2021

Bahut khoob. Indeed inspirational. Your enlightening words are worthy. Into my favorites.

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Ajay Amitabh Suman

Ajay Amitabh Suman

Chapara, Bihar, India
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