खेल अभी है बाकी... Poem by Devanshu Patel

खेल अभी है बाकी...

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खेल अभी है बाकी...


खेल अभी है बाकी...
कैसे छोड़ गए तुम हाथी?
भूल हुई या? भूल गए तुम?
छोड़ गए तुम साथी? .....कैसे छोड़ गए तुम हाथी?

कहते थे तुम बात सही है
पर ये तो कोई बात नहीं है l
एक्ज़िट पहले मुँह छुपाके
रूठ के जाना ठीक नहीं हैं l
रोता गोली, कोमल भाभी
रोते सब संगाती.....कैसे छोड़ गए तुम हाथी?

सोनू सयानी, माधवी, भिड़े
पोपटलाल हुए चीड़ चीड़े,
रोशन रोशन छोटा गोगी
सबको एक बात ही पीडे:
‘तेल बहोत था ओर दिए में
कैसे जल गई बाती? '....... कैसे छोड़ गए तुम हाथी?

अंजलि भाभी, तारक महेता
जेठा दिखता शोक मे बहेता l
चंपक चाचा और टपू का
मुर्झा चेहरा साफ़ ये कहता:
‘छोड़ के कैसे तुम जा पाए
एक सुनी ना दया की? '.... कैसे छोड़ गए तुम हाथी?

अय्यर बोले इले इले
बबिताजी के होठ है सिले l
नटुकाका, बाघा, पिंकू
सदमे से हो गए है ढ़ीले l
गलती से मिस्टेक हुई क्या
बावरी सोच के थाकी..... कैसे छोड़ गए तुम हाथी?

असित जी हो गए है मौन,
पर 'Show must go on'.
चालू पांडे हो गए ठन्डे
सुन्दर पूछे कर के फॉन:
''बोलो अब्दुल, मुँह तो खोलो
कैसे चल बसे हाथी? ..... कैसे छोड़ गए डॉ. हाथी?

© देवांशु पटेल
शिकागो
July 9,2018

खेल अभी है बाकी...
Tuesday, August 21, 2018
Topic(s) of this poem: tribute
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
तारक मेहता का उल्टा चश्मा..' सिर्फ एक धारावाहिक न रहते हुए आज 'घर-घर में ' और 'जन-मन में'इतना बस गया है की उसके सभी कैरेक्टकर हम को जैसे अपने लगने लगे हैं.... और ऐसे में किसी किरदार निभाने वाले का अचानक चल बसना अत्यंत कष्टदायी होना स्वाभाविक है... ठीक वैसा ही ड़ॉ. हंसराज हाथी के यका यक स्वर्ग सिधार जाने से हमें फील हो रहा हैं..हर कोई चाहे लिख न सकता हो पर दुःख तो अवश्य महसूस करता ही हैं... तो हम सब की और से एक 'शब्दांजलि...ड़ॉ. हाथी के लिए.... सब मिल के दुआ करें की भगवान उनके आत्मा को अनुपम शांति प्रदान करें.... ॐ शांति।
COMMENTS OF THE POEM
Abhipsa Panda 04 November 2018

A great tribute with great lines...very emotional...thanks for sharing

1 0 Reply
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Devanshu Patel

Devanshu Patel

Kapadwanj, Gujarat (India)
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