आत्म मंथन Poem by SHEKHAR MISHRA

आत्म मंथन

असमंजस पूर्ण यह क्षण है।
किंकर्तव्यविमूढ़ यह मन है ।
अंतर द्वन्द की आज पराकाष्ठा है ।
स्वयं से स्वयं का युद्ध चरम सीमा पर है ।
पर दुर्गम पथ पर आगे बढ़ना है ।
पथ प्रदर्शक से साक्षत्कार करना है ।
हर पग पर उचित अनुचित का विश्लेषण करना है ।
आत्म मंथन करना है ।।
यह चुनौती है आत्म सम्मान की रक्षा का ।
निरंतर संघर्ष का शंखनाद करना है।
भावनाओं के इस अथाह महासागर में
असंख्य विचारों के ज्वार भाटे से स्पर्धा करना है ।
जीवन के इस मंथन में
अमृत संग विष को भी अपनाना है ।
नीलकंठ के चरित्र को जीवन दर्शन ऐन सामना है ।
आत्म मंथन करना है ।

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