हिंदी Poem by Upendra Singh 'suman'

हिंदी

अपनों से है अपमानित अपनों की प्यारी हिंदी।
अपनी व्यथा सुनाती मुझको दुलारी हिंदी।


अधिकार मांगने को दर-दर भटक रही है।
दिल्ली की साजिशों से हारी हमारी हिंदी।


भाषा है माँ है अपनी है बोलना सिखाया।
अम्माँ के मुँह की प्यारी लोरी हमारी हिन्दी।


पद से है ये प्रवंचित फिर भी है जन की भाषा।
बेताज है ये रानी हर पद पे भारी हिंदी.


सूना है 'सुमन' देखो माँ भारती का मस्तक।
उनके ललाट की है बिन्दी तुम्हारी हिंदी।


इसका न जोड़ कोई बेजोड़ है ये भाषा।
कैसे 'सुमन' सुनाऊँ कितनी है न्यारी हिन्दी।

Saturday, September 22, 2018
Topic(s) of this poem: language
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success