मैं दरिया में डूब कर मरा फिर भी प्यासा रहा। Poem by Ahatisham Alam

मैं दरिया में डूब कर मरा फिर भी प्यासा रहा।

मेरे वजूद का कुछ अलग ही तकाज़ा रहा
बहुत ख़ामोशी से मदफ़न मेरा जनाज़ा रहा
मैं फ़ना होता रहा और वो फ़िर भी शिकवा-लब रहे
ना मेरी फ़ितरत का ना ग़ैरत का उन्हें अंदाज़ा रहा।
कोई और होता तो उसूलों से समझौता कर लेता
मैं दरिया में डूब कर मरा फ़िर भी प्यासा रहा।
मैं खुदगर्ज़ी समझ तो सकता हूँ मगर कर नहीं सकता
इस बात का उन्हें बखूबी अंदाज़ा रहा।

Sunday, January 13, 2019
Topic(s) of this poem: love,love and friendship
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