अश-आर Poem by Ahatisham Alam

अश-आर

कभी वो सोचते हैं कि वो जीत गये और मैं हार गया
बज़ाहिर वो ख़ुश हक़ीक़त में मैं ही बाज़ी मार गया।

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मैं जब बहुत शिद्दत से उसे याद करता हूँ
उसी वक़्त न जाने क्यों मुझे ये हिचकी आती है।

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ना जाने किस जनम का
तुझसे वास्ता होगा
जो मेरी मन्ज़िलों तक
तेरा रास्ता होगा।

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कभी तो ख़्वाब ऐसा आये
जिसमे तुमको मुझसे मोहब्बत हो
जो हक़ीक़त में जी नहीं सकता
उसको ख्वाबों में ज़िन्दगी दे दो।

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Sunday, January 13, 2019
Topic(s) of this poem: love
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