माँ Poem by Anu Mehta

माँ

Rating: 5.0

माँ आपकी बहुत याद आती है
जब भी मैं पहले घबरा जाती थी, तो मां आप मुझे अपने गले लगा लेती थी,
अब जब भी मैं परेशान होती हूँ, तो अकेले एक कोने में बैठ के खूब सारा रो लेती हूँ,
माँ क्यों अपने मन की बात आप से नहीं कर पाती हूँ
माँ आपको गले लगाने का बहुत मन करता है | आपकी गोद पे अपना सर रखना चाहती हूँ,
माँ बहुत याद आता है वो पल जब मेरे सफल होने पर आपका दौड़ कर खुशी से गले लगाना ।
बहुत याद आता है, माँ आपका शिक्षक बनकर नई-नई बातें सिखाना अपना अनोखा ज्ञान देना ।
माँ बहुत याद आता है कभी दोस्त बन कर हँसी मजाक करना,
मेरे पागलपन के साथ और मेरे खुशियों के साथ शामिल होना,
माँ बहुत याद आता है, मेरी खामोशी को समझ लेना और आप मुझ से पूछते थे कि तुझे क्या हुआ है?
माँ बहुत याद आता है, कभी गुस्से से डाँट कर चुपके से पुकारना फिर सिर पर अपना स्नेह भरा हाथ फेरना ।
माँ मैंबहुत अकेली सी हो गई हूँ इस दुनिया की भीड़ में, आप फिर से मुझे अपनी दुनिया में वापस बुला लो,
वो अपना ममता का साया वो स्नेह भरा प्रेम मुझे दे दो...

माँ
Tuesday, June 11, 2019
Topic(s) of this poem: miss you
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
माँ आपकी बहुत याद आती है
जब भी मैं पहले घबरा जाती थी, तो मां आप मुझे अपने गले लगा लेती थी,
अब जब भी मैं परेशान होती हूँ, तो अकेले एक कोने में बैठ के खूब सारा रो लेती हूँ,
माँ क्यों अपने मन की बात आप से नहीं कर पाती हूँ
माँ आपको गले लगाने का बहुत मन करता है | आपकी गोद पे अपना सर रखना चाहती हूँ,
माँ बहुत याद आता है वो पल जब मेरे सफल होने पर आपका दौड़ कर खुशी से गले लगाना ।
बहुत याद आता है, माँ आपका शिक्षक बनकर नई-नई बातें सिखाना अपना अनोखा ज्ञान देना ।
माँ बहुत याद आता है कभी दोस्त बन कर हँसी मजाक करना,
मेरे पागलपन के साथ और मेरे खुशियों के साथ शामिल होना,
माँ बहुत याद आता है, मेरी खामोशी को समझ लेना और आप मुझ से पूछते थे कि तुझे क्या हुआ है?
माँ बहुत याद आता है, कभी गुस्से से डाँट कर चुपके से पुकारना फिर सिर पर अपना स्नेह भरा हाथ फेरना ।
माँ मैंबहुत अकेली सी हो गई हूँ इस दुनिया की भीड़ में, आप फिर से मुझे अपनी दुनिया में वापस बुला लो,
वो अपना ममता का साया वो स्नेह भरा प्रेम मुझे दे दो...
COMMENTS OF THE POEM
anu mehta 16 June 2019

thank you

0 0 Reply
Rajnish Manga 11 June 2019

एक बेटी को अपनी मां के स्वरुप में बहुत कुछ सहज ही मिल जाता है- एक साथी, एक सहेली, एक गुरू, एक सहारा तथा और भी बहुत कुछ जिसे पाकर वह स्वयं को धन्य समझती है. लेकिन अपनी मां से जुदा हो कर वह खुद को एकाकी महसूस करती है और उस खालीपन से उबर नहीं पाती. मां के प्रति बेटी के सूक्ष्मतम भावों को समेटे इस रचना के लिए धन्यवाद व बधाई, अनु जी.

1 0 Reply
Anu Mehta 13 June 2019

Thank u so much

0 0
Anu Mehta 13 June 2019

thank you ji

0 0
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success