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क्या रखा है वक्त गँवाने
औरों के आख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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उन्हें सफलता मिलती जो
श्रम करने को होते तत्पर,
उन्हें मिले क्या दिवास्वप्न में
लिप्त हुए खोते अवसर?
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प्राप्त नहीं निज हाथों में
निज आलस के अपिधान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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ना आशा ना विषमय तृष्णा
ना झूठे अभिमान में,
बोध कदापि मिले नहीं जो
तत्तपर मत्सर पान में?
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मुदित भाव ले हर्षित हो तुम
औरों के उत्थान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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तुम सृष्टि की अनुपम रचना
तुममें ईश्वर रहते हैं,
अग्नि वायु जल धरती सारे
तुझमें हीं तो बसते हैं।
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ज्ञान प्राप्त हो जाए जग का
निज के अनुसंधान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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क्या रखा है वक्त गँवाने
औरों के आख्यान में,
वर्तमान से वक्त बचा लो
तुम निज के निर्माण में।
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अजय अमिताभ सुमन:
सर्वाधिकार सुरक्षित
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