भूल गया मुझे... Poem by Kamal Meena

भूल गया मुझे...

आजकल मिलती नही नज़रें उनसे
फिर भी उनका ख्याल हैं
वो भूल गया मुझे
अपनी आँखों और हँसी का
एक आशिक़ समझकर
पर वो क्या जाने
इस आशिक़ की जान
आज भी उनके लिए कुर्बान हैं...

काश वक़्त के साथ बदलना
हमने भी सीखा होता
ना वो दिल के पास होता
ना आज भी उसका इंतेज़ार होता
पर क्या करें इस दिल का
वफ़ा के सिवा
कुछ सोचता नहीं
और इस दिल को बेवफा के सिवा
और कोई मिलता नहीं...

ये वफ़ा और इश्क़ की बातें
अब मुझे समझ आती नहीं
बस इतना जानता हूँ
साथ रहती हैं तू इस तरह
ना पास आती हैं
और दूर भी जाती नहीं...

Wednesday, November 13, 2013
Topic(s) of this poem: love
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success