बच्चे हो तुम Poem by Megha Bairwa

बच्चे हो तुम

ज़िद्दी हो, अड़ियल हो, नकचढ़े हो,
शैतान के नाना हो तुम,
अब क्या कहूं..बच्चे हो तुम।

कहने को यूं तो बड़े समझदार हो,
घर की ढाल हो,
नाज़ुक लम्हों में मज़बूत चट्टान हो,
पर चुपके से कोने में रोते भी हो तुम,
बिल्कुल बच्चे हो तुम।

माँ का राजा बेटा, दीदी का 'साला कमीना'
और पड़ोस की भाभियों की जान हो,
बड़े नादान हो तुम
हाय राम..बच्चे हो तुम।

ज़िद पूरी न हो तो रूठते हो,
पारी के लिए मस्का भी लगाते हो,
काम निकलवाना जानते हो तुम,
कहा ना..बच्चे हो तुम।

खुरापाती हो, ऐबले हो, गुंडे हो
पर एक प्यारा सा मासूम सा दिल भी रखते हो तुम
कह तो रही हूं..बच्चे हो तुम।

दर्द देते हो,
उसी दर्द के मर्ज भी बनते हो,
ऐसे ही हो तुम,
बस बच्चे हो तुम।

यूँ तो बड़ी कद्र करते हो,
परवाह भी करते हो,
पर रात रात भर जगाते भी हो तुम,
क्या वाकई में बच्चे हो तुम?

Thursday, August 13, 2020
Topic(s) of this poem: love and friendship
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