सपने छोटे गाँव के, पर शहर से बड़े हैं
मन की डालियों पर, पंछी वोह खड़े हैं.
खुला आसमान ही चाहिए उड़ने के लिए,
और इमारतें तो बनी हैं लड़ने के लिए.
मन तो जंगल है, घर है मेरा
उम्मीद की किरणों का लगता है डेरा
धूप शहर की छन सी जाती है,
पूछती है हवा की यहाँ क्यूँ आती है?
सपने मेरे घर के आँगन में उतरने के लिए
साथ मेरी ज़िन्दगी में बस चलने के लिए
गाँव के थे जो गाँव के लिए खड़े हैं
शहर से डरते नहीं, वोह शहर से बड़े हैं.
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